एक ब्रेन डेड मरीज दे सकता है आठ लोगों को नई जिंदगी
Himachal News: एक ब्रेन डेड मरीज दे सकता है आठ लोगों को नई जिंदगी, एक्सपर्ट ने बताया कैसे
Himachal Pradesh News धरती पर मौजूद किसी भी जीव की जिंदगी उसके लिए सबसे कीमती होती है। यही कारण है कि हेल्थ को वेल्थ भी कहा जाता है। इसी जिंदगी के मोल को समझते हुए विशेषज्ञ डॉ. रवि डोगरा ने बताया कि एक ब्रेन डेड मरीज (Organ donation) अपने अंगों के माध्यम से आठ लोगों को नई जिंदगी दे सकता है।
HIGHLIGHTS
- एक ब्रैन डेड मरीज आठ लोगों को नई जिंदगी दे सकता है
- ब्रैन डेड मरीज अंगदान करने के लिए योग्य होता है
- आइजीएमसी में हर साल करीब 1500 से 2000 मौतें होती हैं
शिमला। Himachal Pradesh News: सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल चमियाना के एनेस्थीसिया विभाग के विशेषज्ञ डॉ. रवि डोगरा ने कहा कि एक ब्रेन डेड मरीज अपने अंगों के माध्यम से आठ लोगों को जीवन दे सकता है। उन्होंने आइसीयू और एचडीयू (हाई डिपेंडेंसी यूनिट) में ब्रेन स्टेम डेथ मैरिज की केयर के बारे में जानकारी साझा की।
आइसीयू में किसी भी प्रकार का संक्रमण न हो, ब्रेन डेड मरीज इसीलिए बहुत विशेष हो जाता है क्योंकि वह अंगदान करने के लिए योग्य होता है।
एक्सप्रट ने दी जानकारी
इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (आइजीमएसी) शिमला में मंगलवार को स्टेट आर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन (सोटो) हिमाचल प्रदेश की ओर से ब्रेन स्टेम डेथ से संबंधित वर्कशाप में चमियाना के न्यूरोलाजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधीर शर्मा ने मानिटरिंग ऑफ ब्रेन स्टेम डेथ एंड डिक्लेरेशन ऑफ ब्रेन स्टेम डेथ के विषय में जानकारी दी।
डॉ. सीता ठाकुर ने की ये अपील
कार्यक्रम में इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल की प्रिंसिपल डॉ. सीता ठाकुर व एमएस डॉ. राहुल राव विशेष रूप से उपस्थित रहे। सोटो के नोडल अधिकारी डॉ. पुनीत महाजन ने स्टाफ से अपील करते हुए कहा कि अस्पताल में उपचाराधीन संभावित ब्रेन डेड मरीजों की पहचान करने के लिए सहयोग दें, ताकि समय रहते अंगदान व नेत्रदान करने के लिए औपचारिकताएं पूरी की जा सकें।
उन्होंने कहा कि पीजीआइ चंडीगढ़ में अंगदान करने वालों में से अधिकतर लोग हिमाचल के निवासी होते हैं। उन्होंने लोगों को अंगदान व नेत्रदान के लिए प्रेरित किया।
2200 मौतों पर नेत्रदान सिर्फ 35 ने किया
नेत्र रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामलाल ठाकुर ने बताया कि आइजीएमसी में हर साल करीब 1500 से 2000 मौतें होती हैं। मरने के बाद हर कोई व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है, लेकिन जानकारी न होने के कारण या कभी विभिन्न भ्रांतियां के करण लोग नेत्रदान नहीं कर पाते हैं। पिछले साल आइजीएमसी में 2200 मौतें हुई थीं, उनमें से केवल 35 लोगों ने नेत्रदान किया।