दिल्ली के कोचिंग संस्थानों को शिफ्ट करने की तैयारी, रिहायशी इलाकों से हटाकर नरेला ले जाने की चर्चाएं
दिल्ली के कोचिंग संस्थानों को शिफ्ट करने की तैयारी
राजेंद्र नगर हादसे ने प्रशासनिक व्यवस्था की नींद उड़ा दी है। तीन छात्रों की जान जाने के बाद अब शासन-प्रशासन की चिंता जगजाहिर है। राज निवास, दिल्ली सरकार, स्थानीय निकाय, फायर विभाग समेत सभी महकमों में बैठकों का दौर चल रहा है। इसमें अब नई बात सामने आ रही है कि कोचिंग संस्थानों को दिल्ली के रिहायशी इलाकों से हटाकर कहीं
और शिफ्ट कर दिया जाए।मंगलवार को राज निवास में इसे लेकर एक बैठक भी हुई, जिसकी पुष्टि बड़े कोचिंग संस्थानों के डायरेक्टर ने की। बैठक में 1998-1999 में हरियाणा के बॉर्डर पर बसाए गए नरेला
उपनगर काे विकल्प के तौर पर सामने रखा गया। यहीं पर राजेंद्र नगर, मुखर्जी नगर, कटवरिया सराय, लक्ष्मी नगर समेत दूसरी जगहों पर चलने वाले कोचिंग संस्थानों को शिफ्ट करने की योजना है। इससे दिल्ली के घने बसे रिहायशी इलाकों को खाली कराया जा सकेगा। हालांकि, जानकारों की राय है कि कोचिंग को दूसरी तरफ ले जाना आसान नहीं होगा।
सरकार के लिए भी इतना आसान नहीं
जमे-जमाए दिल्ली के कोचिंग सेंटरों को दूसरी जगह शिफ्ट करना इतना आसान नहीं होगा। नरेला या बुराड़ी जैसे इलाकों में अगर सभी कोचिंग संस्थानों के लिए जगह आवंटित की जाती है, तो उसे विकसित करने में लंबा समय लगेगा जबकि सिविल सेवा या अन्य नौकरियों की प्रवेश परीक्षा पूरे साल चलती है। लिहाजा अगर बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में एक या दो साल लग गए तो लाखों अभ्यार्थियों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। दूसरी तरफ सवाल यह भी है कि इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होने में वक्त लगता है और जहां कोचिंग संस्थान हैं वहीं उन्हें पढ़ाई करवाने की मंजूरी मिली तो फिर से इस तरह का हादसा नहीं हो इसकी भी गारंटी नहीं है। मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर की घटना ने सभी की आंखें खोल दी हैं।
फिलहाल नरेला की स्थिति
तीन उप-नगरों द्वारका, रोहिणी और नरेला की परिकल्पना डीडीए ने 1987 में राष्ट्रीय राजधानी में किफायती आवास की बढ़ती मांग के मद्देनजर की थी। द्वारका और रोहिणी में तो
बसावट हो गई लेकिन नरेला के फ्लैट आज भी खंडहर हो रहे हैं। हरियाणा बॉर्डर पर बसे इस उपनगर में क्राइम भी बहुत बड़ी समस्या है। नरेला की मध्य दिल्ली से दूरी 40
किलोमीटर से भी अधिक है। मेट्रो तो प्रस्तावित है लेकिन कब तक इस उपनगर को मुख्य दिल्ली से जोड़ेगी यह अधर में है। रिहायश शुरू होने लगी तब इतनी दूर जाने के बजाय
लोग तंग जगहों में रहने में खुश थे, बशर्ते कि वे शहर के बीच में हों। सीवेज सिस्टम ठीक है और न ही प्रदूषण पर नियंत्रण। कनेक्टिविटी का भी अभाव है। थियेटर या मॉल्स जैसा
कोई मनोरंजन नहीं है। खराब इनफ्रास्ट्रक्चर ने नरेला को अपराध की एक नर्सरी बनाया है। तीसरी रिंग रोड योजना एक दशक पहले तैयार की गई थी, जो अभी तक अधर में ही है।
बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की तरफ ध्यान देना होगा
सरकार अगर इस तरह की योजना बना रही है तो सबसे बड़ी आवश्यकता बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की तरफ ध्यान देना होगा। यह भी देखना होगा कि उस जगह को विकसित करने में
ज्यादा वक्त नहीं लगे, क्योंकि छात्रों का भविष्य इससे जुड़ा हुआ है। छात्रों के स्वास्थ्य के लिहाजा से और सुरक्षा के लिहाज से भी बेहतर होना चाहिए। छात्रों की एक समस्या
आवासीय भी है। लिहाजा सस्ता फ्लैट होना चाहिए जहां वह कम खर्च में रहकर पढ़ाई कर सकें। भूमि आवंटन का एक बेसिक सॉल्यूशन होना चाहिए, जो भी जगह सरकार की तरफ से तय की जाए, वहां बुनियादी सुविधा बेहद ही आवश्यक है।
–मणिकांत सिंह, डायरेक्टर, द स्टडी एन इंस्टीट्यूट फॉर आईएएस
एक से दूसरी जगह शिफ्ट करना ही समस्या का समाधान नहीं
छात्रों की पढ़ाई के लिए सबसे जरूरी सुरक्षा है। बेसिक सिविक इंफ्रास्ट्रक्चर होना जरूरी है। जहां भी भूमि आवंटन कोचिंग संस्थानों के लिए किया जाए, वहां हॉस्टल और लाइब्रेरी की सुविधा बच्चों के लिए जरूरी है। हॉस्टल इसलिए जरूरी है क्योंकि दिल्ली में बड़ी समस्या किराये का मकान है जो छात्रों से अधिक कीमत वसूलते हैं। एक जगह से दूसरी जगह ही शिफ्ट करना समस्या का समाधान नहीं है। समाधान तब है जब पढ़ाई के माहौल के लिए बुनियादी सुविधा अन्य राज्यों से पढ़ाई के लिए दिल्ली आने वाले छात्रों को दी जाए। खाने का इंतजाम भी बेहतर होना चाहिए। अस्पतालों की व्यवस्था होनी चाहिए। यह सच्चाई है कि दिल्ली में इस तरह का स्कोप नहीं है। गुरुग्राम या अन्य जगह भी हो सकता है। हर इंसान जो दिल्ली आता है वह आईएएस नहीं बन जाता है यह भी एक सच्चाई है। सबसे जरूरी है सुरक्षा। संभव हो तो छात्र घर पर रहकर भी पढ़ाई करें।