नरचौक मेडिकल कॉलेज: मनोरोग ओपीडी में 200 मरीज, 50 चिट्टे की चपेट में

Nerchowk Medical College: मनोरोग ओपीडी में हर रोज पहुंच रहे 200 मरीज, 50 चिट्टे की चपेट में
हिंदी टीवी न्यूज़, नेरचौक (मंडी) Published by: Megha Jain Updated Wed, 19 Feb 2025
चिट्टा और दूसरे नशे की लत लगने के बाद अभिभावक और खुद युवा अपना उपचार करवाने आ रहे हैं। नेरचौक मेडिकल कॉलेज में उपचार करवाने पहुंचे युवाओं का मनोचिकित्सक दवाओं और काउंसलिंग के जरिये मार्गदर्शन कर रहे हैं।
श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक में रोजाना औसतन 200 लोग इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें 50 युवा चिट्टा की लत से छुुटकारा पाना चाहते हैं। चिट्टा और दूसरे नशे की लत लगने के बाद अभिभावक और खुद युवा अपना उपचार करवाने आ रहे हैं। नेरचौक मेडिकल कॉलेज में उपचार करवाने पहुंचे युवाओं का मनोचिकित्सक दवाओं और काउंसलिंग के जरिये मार्गदर्शन कर रहे हैं। मंडी ही नहीं, कुल्लू, लाहौल-स्पीति, बिलासपुर, कांगड़ा और चंबा से भी युवा इलाज के लिए आ रहे हैं। मनोचिकित्सा विभाग में पांच डॉक्टर, दो क्लीनिक चिकित्सक, एक मनोवैज्ञानिक, डाटा ऑपरेटर, सिक्योरिटी गार्ड के साथ 11 व्यक्ति सेवाएं दे रहे हैं।
मनोचिकित्सकों के अनुसार चिट्टा एक रासायनिक नशा है जो मस्तिष्क पर असर डालता है। व्यक्ति में घबराहट, बेचैनी, शरीर में दर्द, पसीना, पेट खराब, नाक से पानी चलना, आंखों से पानी चलना और निद्रा रोग इसके लक्षण हैं। आयुर्वेदिक विभाग के सेवानिवृत्त सीएमओ डाॅ. बलदेव ठाकुर बताते हैं कि युवा शुरू में जब पैसा होता है तो वे चिट्टा को नए-नए रूप में लेते हैं। हालात जब बदल जाते हैं तो वे उपचार के लिए अस्पताल पहुंच जाते हैं। इसके उपचार की दवाइयां भी महंगी होती हैं। अस्पताल में नहीं मिलती। बाहर से लेनी पड़ती हैं।
नशे की लत एक मानसिक बीमारी
-जब कोई शख्स नशे के सेवन को कंट्रोल नहीं कर पाता है तो नशीले पदार्थ का सेवन बीमारी का रूप धारण कर लेती है।
-लत लगना मानसिक बीमारी है।
-ज्यादा समय तक नशा करने पर दिमाग में बदलाव होने लगता है, जिसे बिना इलाज के ठीक करना मुमकिन नहीं है।
– लंबे समय तक इलाज की जरूरत पड़ती है। इलाज के दौरान दवाई, काउंसलिंग और सामाजिक मेल-मिलाप जरूरी होता है।
-इलाज के बाद भी बहुत सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि इसकी आशंका बनी रहती है कि लत खत्म होने के बाद, यह फिर से शुरू हो जाए।
चिट्टा की लत को छोड़ना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है। अगर किसी को लत लग जाए तो वह घर बार से नाता तोड़कर सिर्फ चिट्टा की लत से जुड़ जाता है। युवाओं को हक है कि वे मुख्य धारा में फिर से जुड़ें। इसके लिए मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग के सभी लोग कार्य में लगे हैं। पीड़ित युवक अपना इलाज करवाकर मुख्य धारा में आ सकते हैं।-डीके वर्मा, प्रिंसिपल, लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक
कॉलेज में रोजाना 200 के करीब ओपीडी होती है। इसमें औसतन 50 केस चिट्टा से संबंधित होते हैं। चिट्टा की लत में 20 से 40 वर्ष तक की उम्र के लोग शामिल हैं। दूसरे जिलों से भी युवा इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। वर्तमान में 300 युवा इलाज करवा रहे हैं।-डॉ. विनीत शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, मनोचिकित्सा विभाग