फिर हरियाणा फतह की तैयारी में भाजपा, हारे हुए उम्मीदवारों की पढ़ रही कुंडली; कई विधायकों के कटेंगे टिकट
फिर हरियाणा फतह की तैयारी में भाजपा, कई विधायकों के कटेंगे टिकट
हरियाणा (Haryana Election 2024) में तीसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए भाजपा के रणनीतिकार पूरे जी-जान से रणनीति बनाने में जुटे हैं। एक के बाद एक हो रही बैठकों में जहां कांग्रेस के हमलों का जवाब देने की तैयारी की जा रही है, वहीं संघ के साथ तालमेल बढ़ाकर जिताऊ चेहरों की तलाश हो रही है।एंटी इन्कमबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) का असर खत्म करने को पार्टी मौजूदा विधायकों की भूमिका बदल सकते हैं। भाजपा किसी कोटे का ध्यान रखने की बजाय जातीय समीकरण और पार्टी की जीत की कसौटी पर खरा उतरने वाले उम्मीदवारों पर विधानसभा चुनाव में दाव खेलेगी।
टिकट के दावेदारों की जांच हो रही कुंडली
भाजपा में उम्मीदवारों की तलाश के लिए सर्वे एजेंसियां तो फील्ड से जानकारी जुटा ही रही हैं, पार्टी के प्रमुख नेता अपने-अपने स्रोत के माध्यम से भी दावेदारों की पूरी कुंडली जांच रहे हैं। साल 2019 में हुए चुनाव के दौरान भाजपा ने 75 पार सीटों का नारा दिया था, लेकिन भाजपा को सिर्फ 40 विधानसभा सीटों पर संतोष करना पड़ा था।उस समय कांग्रेस ने यह सोचते हुए कि भाजपा की सरकार आना तय है, गंभीरता के साथ विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। इस बार लोकसभा चुनाव में नतीजे भाजपा की उम्मीद के अनुरूप नहीं आए हैं।राज्य की 10 लोकसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस की जीत हुई है, जबकि पांच पर भाजपा ने चुनाव जीता है। कुछ टिकटों के आवंटन को लेकर दोनों दलों में तरह-तरह की बात चल रही है।
लोकसभा की खामियों से विधानसभा में ले रही सबक
भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि यदि सिरसा, हिसार और सोनीपत लोकसभा सीटों पर टिकटों का आवंटन पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं के अनुरूप हो जाता तो जीत का आंकड़ा आठ लोकसभा सीटों तक पहुंच सकता था।
कांग्रेस के रणनीतिकारों का भी यही मानना है। उनकी सोच है कि यदि कांग्रेस कुरुक्षेत्र सीट आम आदमी पार्टी को देने की बजाय स्वयं लड़ती तो जीत सकती थी, जबकि करनाल में कोई मजबूत चेहरा चुनावी रण में उतारा जाता।
लोकसभा चुनाव की रणनीति में रह गई खामियों से सबक लेते हुए भाजपा इस बार विधानसभा चुनाव में किसी तरह का रिस्क लेने के मूड में बिल्कुल भी नहीं है। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने जिन विधानसभा सीटों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है, वहां संघ की खास निगाह है।
सरकार में सहयोगी रहे विधायकों पर बरसेगी कृपा
भाजपा के रणनीतिकारों को यदि कुछ मौजूदा विधायकों के टिकट भी बदलने पड़े तो वह इसमें हिचकिचाने वाले नहीं हैं। साथ ही साल 2019 में मामूली अंतर से पराजित हुए भाजपा उम्मीदवारों की कुंडली भी खंगाली जा रही है और इस बात का अध्ययन किया जा रहा है कि साल 2019 के बाद अब तक पांच सालों में पार्टी व जनता के बीच उनकी किस तरह की परफारमेंस रही है।
यदि भाजपा व संघ की कसौटी पर ऐसे उम्मीदवार खरे उतरे तो उन्हें टिकट दिए जा सकते हैं। पार्टी मौजूदा विधायकों का रिपोर्ट कार्ड तैयार कर रही है। जिन विधायकों की रिपोर्ट अच्छी नहीं है और जनता में स्वीकार्यता कम हो चुकी है, ऐसे विधायकों को इस बार पवेलियन में बैठकर राजनीतिक दंगल देखना पड़ सकता है।
भाजपा में ऐसे निर्दलीय और दूसरे दलों के बागी विधायकों को भी अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाने को लेकर विचार चल रहा है, जिन्होंने इस बार भाजपा सरकार को चलाए रखने में सहयोग दिया है।