भारतीय भाषाओं से सशक्त होती हिंदी
रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी।’ उन्होंने यह इसलिए कहा था, क्योंकि उन्हें हिंदी के महत्व का बोध था। हिंदी स्वतंत्रता संग्राम के समय स्वाधीनता सेनानियों के बीच संपर्क का प्रमुख माध्यम रही। हिंदी विविधता में एकता का सूत्र है और वह देश के बड़े हिस्से में अधिकांश लोगों द्वारा सबसे अधिक बोली-समझी जाती है। हिंदी देश के सामाजिक, राजनीतिक, सांप्रदायिक एवं भाषाई समन्वय और सौहार्द का प्रतीक है।
हिंदी विभिन्न भाषाओं के प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित करके सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है। हिंदी ने तेलुगु से कुचीपुड़ी और मोरम शब्दों को ग्रहण किया तो तमिल से पिल्ला और पंडाल जैसे शब्द अपनाए। इसी तरह चाल (छोटा कमरा) मलयालम का शब्द है। छाता बांग्ला का शब्द और हड़ताल गुजराती का है। ये शब्द हिंदी में खूब प्रचलित हैं। हिंदी में श्री, श्रीमती, राष्ट्रपति, मुद्रास्फीति जैसे शब्द मूलतः मराठीभाषी बाबूराव विष्णु पराड़कर के चलाए हुए हैं।
कोई भाषा तभी नीरभरी नदी बनती है जब वह दूसरी भाषाओं से स्रोत ग्रहण करे। इससे वह समृद्ध भी बनती है। हिंदी समेत कई भाषाओं में एक मुहावरा है-तू डाल-डाल, मैं पात-पात। तेलुगु में भी यह मुहावरा है। उसका हिंदी अनुवाद होगा-तू मेघ-मेघ, मैं तारा-तारा। ऐसे मुहावरों के चलन से हिंदी और सशक्त होगी। हिंदी को पूरे देश में राजभाषा के रूप में पूरी तरह स्वीकार्यता तभी मिलेगी, जब हम सभी स्थानीय भाषाओं को भी सम्मान देंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय भाषाओं में शिक्षा पर बल दिया गया है। मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज की उन्नति संभव नहीं है। भाषा राजकीय उत्सवों से नहीं, बल्कि जन सरोकारों और लोक परंपराओं से समृद्ध होती है। हिंदी की सबसे बड़ी शक्ति इसकी वैज्ञानिकता, मौलिकता, सरलता और स्वीकार्यता है। हिंदी की विशेषता है कि इसमें जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है।
हिंदी सर्वसुलभ और सहज ग्रहणीय भाषा है। उसका स्वरूप समावेशी है और लिपि देवनागरी विश्व की सबसे पुरानी एवं वैज्ञानिक लिपियों में से एक है। हिंदी आधुनिक भी है और पुरातन भी। हिंदी के ये गुण ही उसे मात्र एक भाषा के स्तर से ऊपर एक संस्कृति होने का सम्मान दिलाते हैं। राजभाषा हिंदी के माध्यम से देश की जनता की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अपेक्षाओं को पूरा करने वाली योजनाओं को आखिरी सिरे तक पहुंचाना सरकारी तंत्र का प्रमुख कर्तव्य है और उसकी सफलता की कसौटी भी।
यदि हम चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र निरंतर प्रगतिशील रहे और अधिक सशक्त बने तो हमें संघ के कामकाज में हिंदी और राज्यों के कामकाज में उनकी प्रांतीय भाषाओं का प्रयोग करना होगा। हिंदी को उसके वर्तमान स्वरूप तक पहुंचाने में सभी प्रदेशों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत की सभी भाषाएं समृद्ध हैं। उनका अपना साहित्य, शब्दावली, अभिव्यक्ति एवं मुहावरे हैं। इन सभी भाषाओं में भारतीयता की एक आंतरिक शक्ति भी है।
हिंदी की सेवा अनेक हिंदीतरभाषियों ने भी की है। केरल के प्रथम हिंदी प्रचारक मलयालम भाषी एमके दामोदरन उण्णि थे। मलयालम भाषी जी. गोपीनाथन, दंद्रहासन, एन चंद्रशेखरन नायर, एनई विश्वनाथ अय्यर और केसी अजय कुमार की हिंदी सेवा को हम भूल नहीं सकते। इसी कड़ी में सुब्रह्मण्य भारती, सुमति अय्यर और पी. जयरामन जैसे तमिलभाषियों, बीवी कारंत और नारायण दत्त जैसे कन्नड़भाषियों, मोटूरि सत्यनारायण, भीमसेन निर्मल, बाल शौरि रेड्डी और यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद जैसे तेलुगुभाषियों ने भी हिंदी की जो सेवा की उसे याद रखना चाहिए।
अनेक मराठी भाषियों जैसे सखाराम गणेश देउस्कर, लक्ष्मण नारायण गर्दे, माधव राव सप्रे, बाबूराव विष्णु पराड़कर, प्रभाकर माचवे, चंद्रकांत वांडिवडेकर, राहुल बारपुते ने हिंदी की अनन्य सेवा की। राजा राममोहन राय, श्याम सुंदर सेन, अमृतलाल चक्रवर्ती, चिंतामणि घोष, क्षितिंद्र मोहन मित्र, शारदा चरण मित्र, रामानंद चट्टोपाध्याय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, नलिनी मोहन सान्याल, सुनीति कुमार और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे बांग्लाभाषियों ने भी हिंदी की खूब सेवा की। टैगोर ने तो विश्वभारती में हिंदी भवन की स्थापना कर हजारी प्रसाद द्विवेदी को हिंदी शिक्षक नियुक्त किया। महात्मा गांधी ने हिंदी को भारतीय चिंतन-धारा का स्वाभाविक विकास क्रम माना था। हिंदी भाषा का प्रश्न उनके लिए स्वराज्य का प्रश्न था। हिंदी का महत्व हमारे संविधान निर्माताओं ने प्रारंभ में ही स्वीकार किया और उसकी सर्वग्राह्यता को ध्यान में रखते हुए ही संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में अंगीकार किया।
हिंदी ने राष्ट्रीय एकता का मार्ग तो प्रशस्त किया ही, उसे यह भी बोध रहा है कि भारत का विकास और राष्ट्रीय एकता की रक्षा प्रादेशिक भाषाओं के पूर्ण विकास से ही संभव है। सहयोग और सहकार के लक्ष्य की प्राप्ति हिंदी के माध्यम से ही संभव होती रही है। विविधता और बहुभाषिकता भारत की विशेषता है। विभिन्न भाषाओं के साथ हिंदी का सहज संबंध विकसित हुआ है। हिंदी और भारतीय भाषाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान संगठित एवं योजनाबद्ध तरीके से बढ़ाने की आवश्यकता है।
हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच पारस्परिक साझेदारी विकसित होने पर देशवासियों के बीच तालमेल बेहतर होगा। हमें हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच सुगम संबंध की समझ का विकास करने का संकल्प लेना होगा। इसके साथ ही हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच अन्योन्याश्रित संबंध का संधान करना होगा। हिंदीतर भाषाओं के साथ हिंदी की भाषिक और अर्थपरक समझ का विकास होने पर अखिल भारतीय बोध का विस्तार होगा।