शिकारी देवी में लगा भक्तों का तांता, रोजाना पहुंच रही 1000 गाड़ियां
शिकारी देवी में लगा भक्तों का तांता, रोजाना पहुंच रही 1000 गाड़ियां, पांडव काल में बना है मंदिर
Mandi Shikari Devi Temple: देवभूमि हिमाचल पर स्थित शिकारी देवी मां का मंदिर काफी प्रसिद्ध और चमत्कारी मंदिर माना जाता है. ये मंदिर सराज घाटी पर स्थित है और बताया जाता है कि सर्दियों के मौसम में यहां 6-7 फीट तक बर्फ गिरती है.
मंडी. देश के मैदानी इलाको में प्रचंड गर्मी झेल रहे लोग इन दिनों उन धार्मिक स्थलों का रुख कर रहे हैं, जहां उन्हें शीतलता की छांव मिलती है. ऐसा ही एक धार्मिक स्थल हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में माता शिकारी देवी मंदिर है.
समुद्रतल से 11 हजार फीट की उंचाई पर बसा माता शिकारी देवी का यह प्राचीन मंदिर मंडी जिला के तहत आने वाली सराजघाटी में स्थित है. माता शिकारी देवी मंदिर के मौसम की बात करें तो आज भी यहां गर्म कपड़ों का सहारा लेना ही पड़ता है. यह मंदिर हर वर्ष मार्च महीने में खुल जाता है और नवंबर महीने के मध्य तक यहां पर श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहता है.
अप्रैल, मई और जून में श्रद्धालुओं के आने की संख्या में ज्यादा बढ़ोतरी होती है। मंदिर के सेवादार शेष राम ने बताया कि रोजाना मंदिर में 500 से 1000 श्रद्धालु आ रहे हैं जबकि छुट्टियों के दौरान यह आंकड़ा 10 हजार तक भी पहुंच जाता है.
माता शिकारी देवी का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आजकल किसी जन्नत से कम नहीं है. मन्नत मांगने के साथ-साथ यहां पहुंचने पर भक्तों को जो शीतलता मिलती है उसे कोई भी अपने शब्दों में बयां नहीं कर सकता.
मंदिर आए श्रद्धालु कुलदीप चंद, सीमा देवी, निर्मला देवी और विजय कुमारी ने बताया कि उन्होंने मंदिर के बारे में काफी सुना था और जब यहां पहुंचे तो उससे कहीं ज्यादा पाया. मंदिर पहुंचने पर एक अलग सुकून की अनुभूति होती है और माता अपने भक्तों की हर मुराद को पूरा करती है.
लगातार यहां पर भक्त पहुंच रहे हैं. सड़क किनारे गाड़ियों की लाइन देखी जा सकती है. पार्किंग की भी यहां पर दिक्कत हो रही है. लेकिन श्रद्धालुओं का उत्साह बना हुआ है. शिकारी देवी का मंदिर इकलौता ऐसा प्रसिद्ध शक्तिपीठ है जो बीना छत के है। माता के मंदिर पर किसी भी प्रकार की कोई छत नहीं है. यहां एकसाथ 64 योगनियां विराजमान हैं.
मंदिर कमेटी के सदस्य धनीराम ठाकुर ने बताया कि स्व. वीरभद्र सिंह को इसी मंदिर से मन्नत मांगने के बाद विक्रमादित्य सिंह के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई थी, स्व. वीरभद्र सिंह और मंदिर कमेटी ने यहां पद छत डालने का काफी प्रयास किया लेकिन माता ने इसकी इजाजत नहीं दी. मंदिर का इतिहास पांडव काल से जुड़ा हुआ बताया जाता है. माता शिकारी देवी को लेकर मान्यता है कि इस मंदिर से कभी भी कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता. माता अपने भक्तों की सच्चे मन से मांगी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है.
मान्यता है कि यदि आपके शरीर के किसी अंग में अत्याधिक कष्ट रहता है तो आप यहां आकर उस अंग के स्वस्थ होने की कामना करते हैं तो फिर उस कामना के पूरा होने पर आप चांदी से बने कृत्रिम अंग की छोटी सी प्रतिमा इस मंदिर में भेंट स्वरूप चढ़ाते हैं. मंदिर कमेटी के सदस्य धनीराम ठाकुर ने बताया कि ऐसी प्रतिमाओं से आज मंदिर कमेटी के पास 10 से 15 किलो चांदी एकत्रित हो चुकी है.