सवाल जवाब: नवरात्र में देवी अंबा की पूजा करनी चाहिए या नौ भिन्न-भिन्न देवियों की, जानें
शारदीय नवरात्रि चल रहे हैं और देवी के भक्तों के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण होता है। इन दिनों हर दिन मां भगवती के अलग अलग स्वरूपों
रुद्रयामल तंत्र कहता है कि इदं तू कुन्जिका-स्तोत्रम मंत्र-जागर्ति-हेतवे| अभक्ते नैव दातव्यम गोपितम रक्ष पार्वती|| यस्तु कुन्जीकया देवी हिनाम सप्तशतीं पठेत| न तस्य जायते सिद्धिर-रण्यै रोदानं यथा|| अर्थात सिद्ध कुंजिका का पठन स्वयं में सप्तशती की विराट क्षमता समेटे हुए है।
ज्ञान का पिटारा
स्वयं की जागृति के लिए नवरात्र पर ध्यान और मौन श्रेष्ठ माध्यम है। इसके द्वारा आप अपनी आंतरिक ऊर्जा को जाया न करके, उसे सहेज कर, उसका संचरण यानि विस्तार करते हैं। यदि तकनीकी कर्मकांड में रुचि है तो मार्कण्डेय पुराण में वर्णित दुर्गा पाठ का सस्वर उच्चारण अपनी अंतर्मन की शक्ति को धार देने के लिए उत्तम माना जाता है, पर यह पाठ समय साध्य है। यदि समयाभाव हो, तो रुद्रयामल तंत्र में उल्लेखित ‘सिद्ध कुंजिका स्तोत्र’ का भी पठन किया जा सकता है। शृणु देवी प्रवक्ष्यामी कुंजिका-स्तोत्र-मुत्तमम् से आरंभ होने वाले 8 श्लोकों का यह पाठ ख़ुद में सप्तशती सदृश दिव्य ऊर्जा के फैलाव में सहायक माना गया है।कुंडली के लग्न यानी प्रथम भाव में यदि केतु विराजमान हों, तो व्यक्ति करियर, व्यापार, कारोबार में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करता है। यह केतु पिछले जन्मों और अनसुलझे रहस्यों के साथ आध्यात्मिक उन्नति का भी कारक है। इनकी अंतर्दृष्टि कमाल की होती है। इनका व्यक्तित्व चुंबकीय होता है। ये लोगों को अपनी ओर सहजता से आकर्षित कर लेते हैं। इनकी बातें हमेशा स्पष्ट नहीं होती, कई बार उनका अर्थ बहुत गहरा होता है, जो अक्सर रहस्य से परिपूर्ण लगती हैं। पारिवारिक जीवन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सिर दर्द की समस्या इन्हें कष्ट देती है। यात्रा के शौकीन होते हैं। इन्हें अपनी संगति के प्रति सचेत रहना चाहिए। लाभ के लिए यह सतर्क रहते हैं, इसलिए लोग अक्सर इन्हें स्वार्थी और लालची लेते हैं। शुभ केतु मानसिक क्षमताओं से भी समृद्ध बनाता है। यह अंतर्ज्ञान का भी प्रतिपादन करता है। नकारात्मक केतु स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालता है और सहनशक्ति को कम करता है। अशुभ केतु अक्सर आत्मविश्वास और साहस की कमी का कारक बन जाता है। तब जीवन की आपाधापी का सामना ये आसानी से नहीं कर पाते। आयु प्रभावित होती है, वैवाहिक जीवन में समस्याएं सर उठाती हैं।प्रश्न: नवरात्र पर देवी के समक्ष किए जाने वाले पाठ के बारे में विस्तार से बताएं कि वह क्या है और उससे क्या होता है? –
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि नवरात्र पर किया जाने वाला चंडीपाठ या देवी पाठ दरअसल ध्वनि के द्वारा अपने भीतर की ऊर्जा के विस्तार की एक विशिष्ट पद्धति है। वह पाठ प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण के श्लोकों में गुंथे वो सात सौ वैज्ञानिक फॉर्म्युले हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो अपने शब्द संयोजन की ध्वनि से हमारे अंदर की बदहाली और तिमिर को नष्ट करने क्षमता रखते हैं। कवच, अर्गला, कीलक, प्रधानिकम रहस्यम, वैकृतिकम रहस्यम और मूर्तिरहस्यम के छह आवरणों में ये सूत्र लिपटे हुए हैं। इसके सात सौ मंत्रों में से हर मंत्र अपने चौदह अंगों में गुंथा है, जो इस प्रकार हैं- ऋषि, देवता, बीज, शक्ति, महाविद्या, गुण, ज्ञानेंद्रिय, रस, कर्मेंद्रिय स्वर, तत्व, कला, उत्कीलन और मुद्रा। माना जाता है कि संकल्प और न्यास के साथ इसके उच्चारण से हमारे अंदर एक रासायनिक परिवर्तन होता है, जो आत्मिक शक्ति और आत्मविश्वास को फलक पर पहुंचाने की योग्यता रखता है। मान्यताएं इसे अपनी आंतरिक ऊर्जा के विस्तार में सहायक मानती हैं।
प्रश्न: क्या नवरात्र पर समृद्धि की साधना हो सकती है? –
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि नवरात्र की नौ रात्रियां अपनी बिखरी ऊर्जा को ख़ुद में समेटने का काल है। इसके तीन दिन आत्म बोध और ज्ञान बोध के, तीन दिन शक्ति संकलन और उसके संचरण यानी फैलाव के और तीन दिन स्थूल समृद्धि अर्थात धन प्राप्ति के बताए गए हैं। यूं तो नवरात्र में भी समृद्धि कारक साधना की जा सकती है, क्योंकि इसकी तीन रात्रि अर्थ, धन या भौतिक संसाधनों की मानी गई हैं। पर यह पर्व सीधे धन न देकर, अर्थार्जन की क्षमता प्रदान करता हैं, जो कर्म, श्रम और प्रयास के बिना फलीभूत नहीं होता। सनद रहे कि धन प्राप्ति के सूत्र तो सिर्फ श्रम पूर्वक कर्म और स्वयं की योग्यता व क्षमता में ही समाहित हैं
प्रश्न: नवरात्र पर देवी अंबा की पूजा करनी चाहिए या नौ भिन्न-भिन्न देवियों की
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि दो ऋतुओं के संधिकाल में नौ दिनों के इस पर्व को देवी ‘अम्बा’ का पर्व कहा गया है। पर अम्बा शब्द ‘अम्म’ और ‘बा’ के युग्म से बना है। कुछ द्रविड़ भाषाओं में ‘अम्म’ का अर्थ जल और ‘बा’ का मतलब अग्नि से है। लिहाज़ा ‘अम्बा’ का शाब्दिक अर्थ बनता है, जल से उत्पन्न होने वाली अग्नि अर्थात् विद्युत। इसीलिए कहीं-कहीं नवरात्र को विद्युत की रात्रि यानि शक्ति की रात्रि भी कहा जाता है। नवरात्र की प्रत्येक रात्रि हमारी स्वयं की सुप्त आंतरिक क्षमताओं और ऊर्जाओं के भिन्न भिन्न पहलुओं को प्रकट करती है, जिसे मान्यताएं नौ प्रकार की शक्तियों या देवियों की संज्ञा देती है
प्रश्न: देवी उपासना में आवरण से क्या आशय हैं? –
उत्तर: देवी उपासना के लिए किए जाने वाले सात सौ श्लोक अर्गला, कीलक, प्रधानिकम रहस्यम, वैकृतिकम रहस्यम और मूर्तिरहस्यम के छह आवरणों में बंधे हुए हैं।