हरीश साल्वे: सबसे महंगे वकीलों में गिनती
कौन हैं हरीश साल्वे?: सबसे महंगे वकीलों में गिनती, 68 में की तीसरी शादी, 1 रु. में लड़ा था कुलभूषण जाधव का केस
देश के सबसे महंगे वकीलों में शुमार और भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने 68 साल की उम्र में तीसरी बार शादी की है। इससे वह एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं। केंद्र सरकार की नवगठित वन नेशन-वन इलेक्शन कमेटी के सदस्य बनाए जाने वाले साल्वे ने एक रुपये की फीस लेकर कुलभूषण जाधव मामले में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में भारत का पक्ष रखा था। 48 साल के अपने करियर में वह कई कॉरपोरेट घरानों का पक्ष कोर्ट में रख चुके हैं। उनकी गिनती भारत के सबसे महंगे वकीलों में होती है। ‘लीगली इंडिया डॉट कॉम’ के मुताबिक, 2015 में साल्वे कोर्ट में एक सुनवाई के लिए 6 से 15 लाख रुपये लेते थे। आइए जानते हैं, उनकी जिंदगी और करियर से जुड़ीं खास बातें-
22 जून 1955 को महाराष्ट्र में जन्मे साल्वे मूलरूप से नागपुर के रहने वाले हैं। उनके दादा पीके साल्वे भी दिग्गज क्रिमिनल लॉयर रह चुके हैं। उनके पिता एनकेपी साल्वे कांग्रेस के नेता और केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। साथ ही वह भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष भी थे। उनकी मां अंब्रिती साल्वे एक डॉक्टर थीं।
हरीश साल्वे बचपन से इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन कॉलेज तक आते-आते उनका रुझान चार्टर्ड अकाउंटेसी (सीए) की ओर हो गया। किताब ‘लीगल ईगल्स’ में बताया गया है कि सीए की परीक्षा में वह दो बार फेल हुए। बाद में, जाने-माने वकील नानी अर्देशर पालखीवाला के कहने पर उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की। वहीं, वकालत के अलावा हरीश साल्वे को संगीत और पियानो बजाने का भी शौक है।
नागपुर में पले बढ़े साल्वे कहते हैं कि मेरे दादा एक कामयाब क्रिमिनल लॉयर थे। पिता चार्टर्ड अकाउंटेंट थे। मां अम्ब्रिती साल्वे डॉक्टर थीं। इसलिए कम उम्र में ही मुझ में प्रोफेशनल गुण आ गए थे।
2. एनकेपी साल्वे ट्रॉफी हरीश के पिता के नाम
हरीश साल्वे के पिता एनकेपी साल्वे पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट थे, लेकिन क्रिकेट प्रशासक और कांग्रेस के साथ अपनी राजनीतिक पारी के लिए ज्यादा जाने गए। पहली बार इंग्लैंड से बाहर क्रिकेट वर्ल्ड कप कराने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। उन्हीं के नाम पर बीसीसीआई ने 1995 में एनकेपी साल्वे ट्रॉफी शुरू की थी। वह इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की सरकारों में मंत्री भी रहे। विदर्भ को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर भी वह काफी मुखर रहे।
3- पिता के संपर्कों का मिला लाभ
हरीश साल्वे ने कानूनी करियर की शुरुआत 1980 में की थी। उन्हें अपने पिता के संपर्कों का भी फायदा मिला, जिससे उनकी मुलाकात नानी पालखीवाला से हुई। शुरुआती दिनों में उन्होंने अपनी टैक्स लॉयर नानी के जूनियर के तौर पर काम करके कानूनी दाव-पेंच सीखे।
4. पहला केस दिलीप कुमार का लड़ा
हरीश के मुताबिक, उनका करियर 1975 में फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार के केस के साथ शुरू हुआ। हरीश इस केस में अपने पिता की मदद कर रहे थे। दिलीप कुमार पर काला धन रखने के आरोप लगे थे। आयकर विभाग ने उन्हें नोटिस भेजा था और बकाया टैक्स के साथ भारी हर्जाना भी मांगा था। मामला ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
अपने शर्मीले दिनों को याद करते हुए साल्वे कहते हैं कि मैं सुप्रीम कोर्ट में दिलीप कुमार का वकील था। आयकर विभाग की अपील खारिज करने में जजों को कुल 45 सेकेंड लगे। दिलीप कुमार एक पारिवारिक मित्र थे। वह बहुत खुश हुए। मुझे कोर्ट में बहस करनी पड़ती तो मेरी आवाज नहीं फूटती। खुशकिस्मती से कोर्ट ने मुझसे जिरह के लिए नहीं कहा।
5- पहली बड़ी प्रशंसा
सरकार जब बेयरर बॉन्ड्स लेकर आई थी तो साल्वे ने अपने सीनियर सोराबजी से इजाजत लेकर सरकारी फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी। इसी मामले पर वरिष्ठ वकील आरके गर्ग ने भी अर्जी दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच इस पर सुनवाई कर रही थी। गर्ग ने तीन घंटे तक अपनी दलीलें रखीं, फिर साल्वे का नंबर आया।
साल्वे ने लड़खड़ाते हुए शुरुआत की। दोपहर ठीक 1 बजे जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या वह अपनी बात रख चुके हैं, लेकिन साल्वे को हैरानी और राहत हुई जब जस्टिस भगवती ने कहा, ‘आपने गर्ग को तीन दिन तक सुना। ये नौजवान अच्छी दलीलें दे रहा है। ये जब तक चाहे, इसे अपनी बात रखने की इजाजत मिलनी चाहिए।’
शाम 4 बजे तक साल्वे ने अपनी बात रखी। साल्वे बताते हैं, ‘जब मैंने खत्म किया तो मुझे सबसे बड़ा इनाम अटॉर्नी जनरल एलएन सिन्हा से मिला, जिनकी मैं पूजा करता था। वो खड़े हुए और बोले कि मैं गर्ग की बातों को 15 मिनट में काउंटर कर सकता हूं, लेकिन मैंने इस नौजवान को बड़े चाव से सुना है। मैं अपने दोस्त मिस्टर पाराशरन (उस वक्त के सॉलिसिटर जनरल) से कहूंगा कि पहले वह इस नौजवान की दलीलों का जवाब देने की कोशिश करें।’
6. दूसरी बार सॉलिसिटर जनरल का पद ठुकरा दिया
साल 1992 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सीनियर एडवोकेट की पदवी मिली। साल 1999 में उन्हें सॉलिसिटर बनाया गया, हालांकि साल 2002 में उन्होंने दूसरी बार मिल रहे इस ऑफर को ठुकरा दिया था।
7- अंबानी, महिंद्रा और टाटा के वकील रहे
दिल्ली हाईकोर्ट की तरफ से 1992 में साल्वे सीनियर एडवोकेट बना दिए गए। इसके बाद उन्होंने अंबानी, महिंद्रा और टाटा जैसे बड़े कॉरपोरेट घरानों की कोर्ट में नुमाइंदगी की। मशहूर केजी बेसिन गैस केस में जब अंबानी बंधुओं के बीच विवाद हुआ तो बड़े भाई मुकेश अंबानी का पक्ष हरीश साल्वे ने ही रखा।
भोपाल गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड केस की सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में उन्होंने केशब महिंद्रा का पक्ष रखा था। कोर्ट ने महिंद्रा समेत यूनियन कार्बाइड के सात अधिकारियों के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या के आरोपों को खरिज कर दिया था। इसके खिलाफ सरकार ने ‘क्यूरेटिव पेटिशन’ दाखिल की थी, जिसमें महिंद्रा की पैरवी साल्वे ने की थी। नीरा राडिया के टेप सामने आने के बाद रतन टाटा निजता के उल्लंघन का सवाल लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे। तब उनके वकील भी साल्वे ही थे।
8- वोडाफोन केस के बाद बढ़ी ख्याति
लेकिन साल्वे को ‘लगभग अजेय’ तब माना गया, जब उन्होंने वोडाफ़ोन को 14,200 करोड़ की कथित टैक्स चोरी के केस में जीत दिलाई। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया और कहा कि भारतीय टैक्स प्रशासन को कंपनी के विदेश में किए लेन-देन पर टैक्स लेने का अधिकार नहीं है। साल्वे बताते हैं, ‘इस केस की तैयारी के दौरान मैं हमेशा अपने पास पालखीवाला की तस्वीर रखा करता था। वह मुझे प्रेरित करते थे।’
9. हिट और रन केस में की थी सलमान की पैरवी
साल 2015 में हिट और रन केस मामले में सलमान खान को कोर्ट ने पांच साल की सजा सुनाई थी। उन्हें कोर्ट से सीधे ऑर्थर रोड जेल ले जाने की तैयारी हो रही थी। इसी बीच एक बदलाव करते हुए हरीश साल्वे ने कोर्ट में सलमान का पक्ष रखा और उन्हें जमानत मिल गई।
हरीश साल्वे ने कोर्ट में तर्क दिया था कि ऑर्डर की कॉपी नहीं मिलने के कारण सलमान को जेल भेजा जाना सही नहीं है। उनके इस तर्क को सही मानते हुए कोर्ट ने सलमान खान को दो दिन की जमानत दे दी थी।
10- पियानो बजाना पसंद
1999 में एनडीए सरकार के समय उन्हें भारत का सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया। उस वक्त उनकी उम्र 43 साल थी। वह 2002 तक इस पद पर रहे। अपने कार्यकाल पर उन्होंने कहा था, ‘मैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, मेरे दोस्त अरुण जेटली, मुरली मनोहर जोशी, अनंत कुमार, सुरेश प्रभु और तमाम लोगों से मिले स्नेह और समर्थन को हमेशा याद रखूंगा।’
साल्वे जब वकालत नहीं करते हैं तो कानून से जुड़ी दिलचस्प चीजें पढ़ते हैं। उन्हें दूसरे विश्व युद्ध पर चर्चिल के लेख बेहद पसंद हैं। वह दिल्ली के वसंत विहार के घर में अपनी बेटियों- साक्षी और सानिया के साथ वक्त बिताना भी पसंद करते हैं। खुद पियानो बजाते हैं और क्यूबा के जैज पियानिस्ट गोंजोलो रूबालकाबा के जबरदस्त फैन हैं।
निजी संपत्ति पर उनके विचार दिलचस्प हैं। वह कहते हैं, ‘मैंने एक चीज़ सीखी है कि कभी अपनी कामयाबी पर शर्मिंदा महसूस नहीं करना चाहिए। मैंने ये मेहनत से कमाया है। मैं यहां तक पहुंचने के लिए किसी की कब्र पर खड़ा नहीं हुआ।’
11. कुलभूषण जाधव मामला
कुलभूषण जाधव को अप्रैल 2017 में जासूसी और आतंकवाद के आरोप में पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। उसके बाद भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का रुख किया था। अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में करीब दो साल की लड़ाई के बाद इस मामले में आखिरी सुनवाई इसी साल 18 से 21 फरवरी तक हुई थी। जाधव का केस हरीश साल्वे ने ही लड़ा था। इसके लिए साल्वे ने भारत सरकार से सिर्फ एक रुपये फीस ली थी।
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