Ram Mandir: स्वर्ग की अनुभूति और हर तरफ प्रकाश देखकर बह गई आंसूओं की धारा, अयोध्या में श्री राम के अलावा कुछ नहीं दिखा
पिछले दिनों श्रीराम मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण आया तो शरीर में जैसे नई उर्जा का संचार सा हो गया और उसी क्षण से अयोध्या जाने की उत्सुकता बढ़ने लगे। गाड़ी में अयोध्या श्रीराम मंदिर से कुछ दूरी पर बनाए गए महात्माओं से शिविरों में पहुंचाया। वहां देश भर में महात्माओं की भीड़ देखकर मन को शांति सी आई।बिलासपुर। विश्वास तो नहीं था कि दोबारा कभी अयोध्या जा पाऊंगा, क्योकिं वर्ष 1992 में यह प्रण लेकर आ गया था कि अब जीवन में तभी अयोध्या श्रीराम मंदिर आऊंगा, जबकि यह मंदिर बन जाएगा, अन्यथा आजीवन अयोध्या के दर्शन नहीं करूंगा। इसके बावजूद दिल में एक उम्मीद थी कि कभी न कभी यह मंदिर बनकर तैयार होगा और मंदिर जाना होगा। शायद यही उम्मीद आज दिन तक जीवित रखे हुए थी।
पूरे सफर में मंदिर के बारे में सोचता रहा
पिछले दिनों श्रीराम मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण आया तो शरीर में जैसे नई उर्जा का संचार सा हो गया और उसी क्षण से अयोध्या जाने की उत्सुकता बढ़ने लगे। 20 जनवरी को बिलासपुर से अंबाला तक निजी वाहन में गया। अंबाला से लखनऊ के ट्रेन ली। सफर लंबा था। पूरे सफर में यही विचार बार बार आ रहा था कि प्रभु श्रीराम का मंदिर कैसा बना होगा।
मंजिल पास आती गई, मन अधीर होने लगा
इंटरनेट मीडिया पर जिस तरह से बनाया गया है उसी तरह का होगा। क्या वहां जाकर कुछ नया भी लगेगा या सामान्य ही अनुभव होगा। इन्हीं पशोपेश के बीच लखनऊ पहुंचा। वहां पहुंचते ही प्रशासन की ओर से एक अधिकारी गाड़ी लेकर पहुंचे थे। उन्होंने स्वागत किया और कहा कि हम आपको अयोध्या ले जाने के लिए आए हैं। जैसे ही प्रशासन की ओर से भेजी गाड़ी में वहां तो मन अधीर सा होने लगा। बड़ी मुश्किल से मन को समझाते हुए अधिकारी से थोड़ी बहुत बातचीत की।
सारी दुनिया को था 22 जनवरी का इंतजार
गाड़ी में अयोध्या श्रीराम मंदिर से कुछ दूरी पर बनाए गए महात्माओं से शिविरों में पहुंचाया। वहां देश भर में महात्माओं की भीड़ देखकर मन को शांति सी आई। वह 22 जनवरी को वह दिन आया जिस दिन का सारी दुनिया बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी। शिविर से बाहर निकले तो चारों और श्रीराममय माहौल था।
गाड़ी ने सीधे ही आयोजन स्थल के ब्लॉक नंबर आठ वीआइपी ब्लॉक में छोड़ा। ब्लॉक में प्रवेश करते ही मन मष्तिष्क में एक बिजली से कौंध गई। चारों और की नजारा देखकर अनुभूति हुई कि स्वर्ग तो यही है।
आंखों से बहने लगे आंसू
जिस स्थान को पहले हम लोग नरक कहते थे वह आज स्वर्ग बन गया है। चऊं और प्रकाशोत्सव और प्रभु श्रीराम की भक्ति को देखकर आसपास या परिचितों से कुछ बात कर पाता उससे पहले आंखों से आंसू आ गए। यह आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हमारे सामने ही मंदिर का मुख्य द्वार था। एक बार जो उस द्वार की ओर नजर गई तो वहां से फिर नजर हटी ही नहीं। मानों सब कुछ शून्य हो गया था और जुबान पर ताला सा लग गया था। मन में सिर्फ प्रभु श्रीराम का ही जाप हो पा रहा था। रह रह कर आंखों से आंसू आए जा रहे थे।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह में बहुत से कार्यक्रम हुए, लेकिन एक बार जो श्रीराम की लगन लगी तो कुछ पता नहीं चला कि आयोजन स्थल पर कौन आ रहा है? क्या हो रहा है और कौन क्या बोल रहा है। उस कुछ घंटे के कार्यक्रम में जो भी मनोभव रहे उनका शब्दों में जीवन भर नहीं कर पाऊंगा।
आज अयोध्या स्वर्ग है
अभी भी सिर्फ इतना याद है कि मन में यही आ रहा था कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की अंतिम स्टेज में होने की बावजूद अगर बच गया हूं तो भगवान में शायद इसी क्षण को देखने के लिए बचाया है। अब तो भगवान अपने पास भी बुला लें तो कोई मन नहीं है। वहां से वापस आते वक्त गहन में यही बात आ रही थी कि अगर कोई मुझसे पूछ लेगा कि अयोध्या श्रीराम मंदिर कैसा है और वहां का नजारा कैसा तो शब्दों में वर्णन करें करूंगा। पहले जिस क्षेत्र को हम धरती का नरक की संज्ञा देते हुए कहते थे कि अगर नरक की टिकट कटानी है तो अयोध्या जा आओ, आज वह अयोध्या स्वर्ग बन गई है।