Himachal Budget Analisis: चुनावी सा दिखते बजट में आखिरी पंक्ति तक पहुंचने की कोशिश
चुनावी से दिखने वाले इस बजट में एक विजन प्रतीत होता है। हर क्षेत्र में नया व हर वर्ग को समृद्ध करने की सोच है, आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प है, जिसकी पृष्ठभूमि में आपदा के जख्मों का दर्द भी है।
करमुक्त, सभी वर्गों का हितैषी, कुछ नई योजनाएं, कुछ चकित करने वाले आंकड़े….अब हर बजट का यही लब्बोलुआब होता है। हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू का दूसरा बजट भी ऐसा ही है। … तो अलग क्या है? अलग यह है कि चुनावी से दिखने वाले इस बजट में एक विजन प्रतीत होता है। हर क्षेत्र में नया व हर वर्ग को समृद्ध करने की सोच है, आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प है, जिसकी पृष्ठभूमि में आपदा के जख्मों का दर्द भी है। गरीबों, महिलाओं, किसानों, कर्मचारियों को कुछ न कुछ देने वाला यह बजट राज्य की कमजोर वित्तीय स्थिति के मद्देनजर साहसिक बजट कहा जा सकता है। लेकिन कर्ज पर कर्ज लेकर और बिना केंद्रीय मदद के समृद्धि का सपना व संकल्प कैसे साकार होंगे…असल सवाल व चुनौती फिर वही है।
मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना, मुख्यमंत्री सुख आरोग्य योजना, दिव्यांगों के लिए शिक्षण संस्थान बनाने, गांवों में पुस्तकालय खोलने जैसी योजनाएं समाज की अंतिम पंक्ति के वंचितों तक को शिक्षा व स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाएं देने का उपक्रम हैं। बजट में गांवों की सूरत संवारने की कोशिश है क्योंकि इसी से इस पहाड़ी राज्य में खुशहाली लाई जा सकती है। दूध का समर्थन मूल्य घोषित करना, भेड़-बकरी पालक प्रोत्साहन योजना व 36 हजार किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने जैसी योजनाएं इस दिशा में कारगर साबित हो सकते हैं।