Jaane Jaan Review:

Jaane Jaan Review: जयदीप अहलावत की जबर्दस्त अदाकारी पर टिकी ‘जाने जां’, ये कलाकार बने फिल्म की कमजोर कड़ी
Movie Review : Movie Review
कलाकार : जयदीप अहलावत , करीना कपूर खान , विजय वर्मा , सौरभ सचदेवा ,
नायशा खन्ना , करमा टकामा और लिन लैशराम
लेखक : सुजॉय घोष और राज वसंत
निर्देशक : सुजॉय घोष
निर्माता : जय शेवकरमानी , अक्षय पुरी , ह्यनवू थॉमस किम और एकता कपूर
रिलीज : 21 सितंबर 2023
रेटिंग : 2/5
फिल्म ‘जाने जां’ करीब 18 साल पहले प्रकाशित हुए एक जापानी उपन्यास ‘द डिवोशन ऑफ सस्पेक्ट एक्स’ (संदिग्ध एक्स का समर्पण) पर बनी पांचवीं फिल्म है। जापान, चीन, दक्षिण कोरिया के अलावा ये फिल्म कोई चार साल पहले तमिल में भी बन चुकी हैं। इसका अंग्रेजी संस्करण निर्माणाधीन है। हिंदी में फिल्म के जरिये अभिनेत्री करीना कपूर का ओटीटी पर डेब्यू हो रहा है। ओटीटी पर इन दिनों विदेशी जासूसी कहानियों को भारतीय परिवेश में ढालकर दिखाने का चलन बढ़ रहा है। अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास पर बनी एक सीरीज सोनी लिव पर ‘चार्ली चोपड़ा’ के नाम से आने वाली है। हां, एक देसी जासूसी कहानी पर बनी फिल्म ‘खुफिया’ भी नेटफ्लिक्स पर ही जल्द रिलीज होने को तैयार है। लेकिन, फिल्म ‘जाने जां’ की रिलीज से पहले इसकी कहानी पर कम और इसकी हीरोइन करीना कपूर खान पर बातें ज्यादा होती रही हैं, और यहीं फिल्म का असल टोटका छिपा हुआ है।

तत् सुखे, सुखे त्वम्
जैसा कि अमर उजाला डॉट कॉम पर प्रसारित वीडियो इंटरव्यू में फिल्म के मुख्य अभिनेता जयदीप अहलावत मानते भी हैं, ये एक प्रेम कहानी है। थ्रिलर की चाशनी में पगी हुई। सुजॉय घोष पश्चिम बंगाल से है तो फिल्म की पृष्ठभूमि भी उन्होंने कलिमपोंग रखी है। करीना, कलिमपोंग और कीगो हिगाशिनो का उपन्यास! तिकड़ी करिश्माई नजर आती है। फिल्म ‘जाने जां’ का गुणसूत्र भी काफी उत्सुकता जगाने वाला है। मूल कहानी एक जासूस गैलीलियो की है जो एक लापता पुलिस अफसर का पता लगाते लगाते वहां पहुंच जाता है जहां पुलिस अफसर की बीवी अपनी बेटी के साथ रह रही है। गणित का एक अध्यापक इन मां-बेटी का पड़ोसी है और मन ही मन उस मां से प्यार करता है जो जासूस की नजर में इस पूरे मामले की मुख्य संदिग्ध है। कहानी की इस बुनावट के हिसाब से फिल्म का मुख्य पात्र करीना कपूर का ही होना चाहिए, लेकिन फिल्म ‘जाने जां’ की वही सबसे कमजोर कड़ी हैं।
जैसा कि अमर उजाला डॉट कॉम पर प्रसारित वीडियो इंटरव्यू में फिल्म के मुख्य अभिनेता जयदीप अहलावत मानते भी हैं, ये एक प्रेम कहानी है। थ्रिलर की चाशनी में पगी हुई। सुजॉय घोष पश्चिम बंगाल से है तो फिल्म की पृष्ठभूमि भी उन्होंने कलिमपोंग रखी है। करीना, कलिमपोंग और कीगो हिगाशिनो का उपन्यास! तिकड़ी करिश्माई नजर आती है। फिल्म ‘जाने जां’ का गुणसूत्र भी काफी उत्सुकता जगाने वाला है। मूल कहानी एक जासूस गैलीलियो की है जो एक लापता पुलिस अफसर का पता लगाते लगाते वहां पहुंच जाता है जहां पुलिस अफसर की बीवी अपनी बेटी के साथ रह रही है। गणित का एक अध्यापक इन मां-बेटी का पड़ोसी है और मन ही मन उस मां से प्यार करता है जो जासूस की नजर में इस पूरे मामले की मुख्य संदिग्ध है। कहानी की इस बुनावट के हिसाब से फिल्म का मुख्य पात्र करीना कपूर का ही होना चाहिए, लेकिन फिल्म ‘जाने जां’ की वही सबसे कमजोर कड़ी हैं।

करिश्मा दिखाने में नाकाम करीना
करीना कपूर खान का अपना आभा मंडल रहा है हिंदी सिनेमा में। उनके निभाए किरदारों की ब्रांडिंग इतने शानदार तरीके से होती रही है कि कभी उनकी अभिनय क्षमता पर बात ही नहीं हुई और ‘डिवोशन ऑफ सस्पेक्ट एक्स’ की कहानी ऐसी है कि इसमें हर किरदार को शतरंज की बिसात की तरह अपनी चाल खेलनी है, अपने चेहरों के भावों का सहारा लेकर। अपना रेस्तरां चलाने वाली माया डिसूजा का ये किरदार करीना के लिए आसान होना चाहिए था। वह निजी जिंदगी में भी मां हैं और यहां भी उनका एक किरदार एक किशोरवय बेटी की मां का ही है। अतीत माया का दागदार भले हो लेकिन अपना वर्तमान और अपनी बेटी का भविष्य वह उज्ज्वल बनाना चाहती है। इस लिहाज से अभिनय की पूरी एक थाल करीना कपूर को मिली है जिसे वह नवरसों का अभ्यास करके सजा सकती थीं, लेकिन ऐसे क्लिष्ट चरित्र निभाने के लिए जो कला चाहिए, वह उनकी कलाकारी में है नहीं।
करीना कपूर खान का अपना आभा मंडल रहा है हिंदी सिनेमा में। उनके निभाए किरदारों की ब्रांडिंग इतने शानदार तरीके से होती रही है कि कभी उनकी अभिनय क्षमता पर बात ही नहीं हुई और ‘डिवोशन ऑफ सस्पेक्ट एक्स’ की कहानी ऐसी है कि इसमें हर किरदार को शतरंज की बिसात की तरह अपनी चाल खेलनी है, अपने चेहरों के भावों का सहारा लेकर। अपना रेस्तरां चलाने वाली माया डिसूजा का ये किरदार करीना के लिए आसान होना चाहिए था। वह निजी जिंदगी में भी मां हैं और यहां भी उनका एक किरदार एक किशोरवय बेटी की मां का ही है। अतीत माया का दागदार भले हो लेकिन अपना वर्तमान और अपनी बेटी का भविष्य वह उज्ज्वल बनाना चाहती है। इस लिहाज से अभिनय की पूरी एक थाल करीना कपूर को मिली है जिसे वह नवरसों का अभ्यास करके सजा सकती थीं, लेकिन ऐसे क्लिष्ट चरित्र निभाने के लिए जो कला चाहिए, वह उनकी कलाकारी में है नहीं।
‘जाने जां’ की जान जयदीप
फिल्म में दो हीरो हैं, जयदीप अहलावत और विजय वर्मा। दोनों असल जिंदगी में पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में साथ पढ़े। यहां फिल्म में भी दोनों सहपाठी बताए जाते हैं। दो हीरो की फिल्मों की हिंदी सिनेमा में बहुत ही शानदार परंपरा रही है। जयदीप और विजय इसे तानने की फिल्म ‘जाने जां’ में कोशिश भी करते हैं। बस, यहां शह और मात का खेल जिस जासूस के हाथ में होना चाहिए था, वह अंत तक आते आते गणित टीचर के पास आ जाता है। वैसे तो हीरो वही है जो हीरोइन ले जाए लेकिन हीरोइन से इतना प्यार करने वाला भी हिंदी सिनेमा क्या, हर भाषा के सिनेमा में हीरो ही होता है। फिल्म ‘जाने जां’ की जान जयदीप अहलावत हैं। जूडो के अभ्यास से लेकर स्कूल में बच्चों के साथ सिक्के का खेल खेलने तक के दृश्यों में जयदीप अपनी बिसात सजाते हैं। चाल चलने की बारी उनकी आती है तब, जब उनकी पड़ोसन खतरे में होती है। वह ब्लैकबोर्ड पर गणित सजाता है। अगली चाल के बारे में तर्क लगाता है और पहुंचता है, वहां जहां गणित के सवाल में आने वाले एक्स का सही उत्तर पा लेने वाला ही पास होता है। और, यहां जयदीप इस सारे खेल में सम्मान सहित अंकों से उत्तीर्ण होते हैं।
फिल्म में दो हीरो हैं, जयदीप अहलावत और विजय वर्मा। दोनों असल जिंदगी में पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में साथ पढ़े। यहां फिल्म में भी दोनों सहपाठी बताए जाते हैं। दो हीरो की फिल्मों की हिंदी सिनेमा में बहुत ही शानदार परंपरा रही है। जयदीप और विजय इसे तानने की फिल्म ‘जाने जां’ में कोशिश भी करते हैं। बस, यहां शह और मात का खेल जिस जासूस के हाथ में होना चाहिए था, वह अंत तक आते आते गणित टीचर के पास आ जाता है। वैसे तो हीरो वही है जो हीरोइन ले जाए लेकिन हीरोइन से इतना प्यार करने वाला भी हिंदी सिनेमा क्या, हर भाषा के सिनेमा में हीरो ही होता है। फिल्म ‘जाने जां’ की जान जयदीप अहलावत हैं। जूडो के अभ्यास से लेकर स्कूल में बच्चों के साथ सिक्के का खेल खेलने तक के दृश्यों में जयदीप अपनी बिसात सजाते हैं। चाल चलने की बारी उनकी आती है तब, जब उनकी पड़ोसन खतरे में होती है। वह ब्लैकबोर्ड पर गणित सजाता है। अगली चाल के बारे में तर्क लगाता है और पहुंचता है, वहां जहां गणित के सवाल में आने वाले एक्स का सही उत्तर पा लेने वाला ही पास होता है। और, यहां जयदीप इस सारे खेल में सम्मान सहित अंकों से उत्तीर्ण होते हैं।
सौरभ और लिन लैशराम चमके
फिल्म में लिन लैशराम भी हैं जिनके अभिनय पर हिंदी सिनेमा की दर्शकों की नजरें अरसे से टिकी रही हैं। फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में पहली बार दिखीं लिन का अभिनय ‘रंगून’ और ‘मैरी कॉम’ जैसी फिल्मों में निखरता रहा है। वेब सीरीज ‘एक्सोन’ में भी उन्हें नोटिस किया गया और फिल्म ‘जाने जां’ का असल टर्निंग प्वाइंट उनके किरदार से ही आता है। वेब सीरीज ‘बंबई मेरी जान’ में हाजी मस्तान से प्रेरित किरदार निभाने वाले सौरभ सचदेवा यहां उस भ्रष्ट पुलिस अफसर के किरदार में हैं जो पहले अपनी बीवी और अब अपनी बेटी को डांस बार में नचाने की जिद पर अड़ा है। सौरभ के चेहरे पर एक खतरनाक विलेन बनने के सारे एहसास मौजूद हैं, बस जरूरत उन्हें एक रमेश सिप्पी की है।
फिल्म में लिन लैशराम भी हैं जिनके अभिनय पर हिंदी सिनेमा की दर्शकों की नजरें अरसे से टिकी रही हैं। फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में पहली बार दिखीं लिन का अभिनय ‘रंगून’ और ‘मैरी कॉम’ जैसी फिल्मों में निखरता रहा है। वेब सीरीज ‘एक्सोन’ में भी उन्हें नोटिस किया गया और फिल्म ‘जाने जां’ का असल टर्निंग प्वाइंट उनके किरदार से ही आता है। वेब सीरीज ‘बंबई मेरी जान’ में हाजी मस्तान से प्रेरित किरदार निभाने वाले सौरभ सचदेवा यहां उस भ्रष्ट पुलिस अफसर के किरदार में हैं जो पहले अपनी बीवी और अब अपनी बेटी को डांस बार में नचाने की जिद पर अड़ा है। सौरभ के चेहरे पर एक खतरनाक विलेन बनने के सारे एहसास मौजूद हैं, बस जरूरत उन्हें एक रमेश सिप्पी की है।
फिर विफल रहे विजय वर्मा
और, फिल्म के दूसरे हीरो विजय वर्मा..! विजय वर्मा ने शायद फिल्म ‘जाने जां’ ये सोचकर की होगी कि फिल्म के हीरो वही हैं। करीना कपूर के साथ गाने-नाचने का मौका भी उन्हें ही मिलता है लेकिन नेटफ्लिक्स के लिए बनी फिल्मावाली में सुजॉय घोष वाली कहानी में तमन्ना भाटिया के साथ दिख चुके विजय वर्मा का हाल यहां भी वैसा ही है। कलाकार जब अपने अभिनय से ज्यादा अपने अफेयर के सहारे चर्चा पाने की कोशिश करता है तो उसकी असल कूवत का अंदाजा दर्शकों को होने लगता है। विजय वर्मा के पास यहां अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का बढ़िया मौका था लेकिन वह हिंदी सिनेमा के अगले नवाजुद्दीन सिद्दीकी बनते दिखते हैं। उनकी कद काठी अपने आप में एक किरदार है, लेकिन सिर्फ देखकर याद रह जाने वाले अभिनेताओं के सामने असल चुनौती इस बात की होती है कि लोगों का उनका अभिनय किन किन किरदारों में याद रह पाता है। विजय को इस मामले में ओम पुरी की फिल्में जरूर देखनी चाहिए और समझना चाहिए कि चूक उनसे कहां हो रही है।
और, फिल्म के दूसरे हीरो विजय वर्मा..! विजय वर्मा ने शायद फिल्म ‘जाने जां’ ये सोचकर की होगी कि फिल्म के हीरो वही हैं। करीना कपूर के साथ गाने-नाचने का मौका भी उन्हें ही मिलता है लेकिन नेटफ्लिक्स के लिए बनी फिल्मावाली में सुजॉय घोष वाली कहानी में तमन्ना भाटिया के साथ दिख चुके विजय वर्मा का हाल यहां भी वैसा ही है। कलाकार जब अपने अभिनय से ज्यादा अपने अफेयर के सहारे चर्चा पाने की कोशिश करता है तो उसकी असल कूवत का अंदाजा दर्शकों को होने लगता है। विजय वर्मा के पास यहां अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का बढ़िया मौका था लेकिन वह हिंदी सिनेमा के अगले नवाजुद्दीन सिद्दीकी बनते दिखते हैं। उनकी कद काठी अपने आप में एक किरदार है, लेकिन सिर्फ देखकर याद रह जाने वाले अभिनेताओं के सामने असल चुनौती इस बात की होती है कि लोगों का उनका अभिनय किन किन किरदारों में याद रह पाता है। विजय को इस मामले में ओम पुरी की फिल्में जरूर देखनी चाहिए और समझना चाहिए कि चूक उनसे कहां हो रही है।

बैकग्राउंड में 21 पुराने गाने!
फिल्म ‘जाने जां’ बहुत कमाल फिल्म नहीं है। आधार इसका अच्छा है। कहानी भी बढ़िया मिस्ट्री थ्रिलर जैसी है। लेकिन निर्देशक सुजॉय घोष का अतिआत्मविश्वास उन्हें फिल्म ‘कहानी’ के बाद बतौर निर्देशक प्रगति नहीं करने दे रहा। उनको अब तक का सीखा भूलने की जरूरत है। वाणी पर नियंत्रण इसमें उनकी पहली सीढ़ी बन सकता है। अपने आसपास से निकलकर उन्हें भारत को नए सिरे से तलाशने की जरूरत है। शायद अपनी आरामगाह से निकलकर नई चुनौतियां तलाशने से वह असली और मूल कहानियां भी तलाश सकेंगे। पहले ‘बदला’ और अब ‘जाने जां’ जैसी फिल्में उन्हें पैसे तो खूब दिला सकती हैं, लेकिन बतौर एक काबिल निर्देशक उनसे फिल्म ‘कहानी’ के आगे की कहानी सजाने की उम्मीद उनके प्रशंसकों को बनी रहेगी। तकनीकी रूप से फिल्म में 21 पुराने गानों का इस्तेमाल इसे कमजोर बनाता है। कहीं भी कोई भी गाना आ जाना फिल्म के प्रवाह को तोड़ता है। हां, लता मंगेशकर का गाया गाना ‘जाने जां’ फिल्म का हाई प्वाइंट है। नेहा कक्कड़ को ऐसे गानों की पुनर्संरचना का प्रयास भी नहीं करना चाहिए।
फिल्म ‘जाने जां’ बहुत कमाल फिल्म नहीं है। आधार इसका अच्छा है। कहानी भी बढ़िया मिस्ट्री थ्रिलर जैसी है। लेकिन निर्देशक सुजॉय घोष का अतिआत्मविश्वास उन्हें फिल्म ‘कहानी’ के बाद बतौर निर्देशक प्रगति नहीं करने दे रहा। उनको अब तक का सीखा भूलने की जरूरत है। वाणी पर नियंत्रण इसमें उनकी पहली सीढ़ी बन सकता है। अपने आसपास से निकलकर उन्हें भारत को नए सिरे से तलाशने की जरूरत है। शायद अपनी आरामगाह से निकलकर नई चुनौतियां तलाशने से वह असली और मूल कहानियां भी तलाश सकेंगे। पहले ‘बदला’ और अब ‘जाने जां’ जैसी फिल्में उन्हें पैसे तो खूब दिला सकती हैं, लेकिन बतौर एक काबिल निर्देशक उनसे फिल्म ‘कहानी’ के आगे की कहानी सजाने की उम्मीद उनके प्रशंसकों को बनी रहेगी। तकनीकी रूप से फिल्म में 21 पुराने गानों का इस्तेमाल इसे कमजोर बनाता है। कहीं भी कोई भी गाना आ जाना फिल्म के प्रवाह को तोड़ता है। हां, लता मंगेशकर का गाया गाना ‘जाने जां’ फिल्म का हाई प्वाइंट है। नेहा कक्कड़ को ऐसे गानों की पुनर्संरचना का प्रयास भी नहीं करना चाहिए।